कैसे जाग्रत करें छठी इंद्री ?
क्या है छठी इंद्री : मस्तिष्क के भीतर कपाल के नीचे एक छिद्र है, उसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं, वहीं से सुषुन्मा रीढ़ से होती हुई मूलाधार तक गई है। सुषुन्मा नाड़ी जुड़ी है सहस्रकार से। इड़ा नाड़ी शरीर के बायीं तरफ स्थित है तथा पिंगला नाड़ी दायीं तरफ अर्थात इड़ा नाड़ी में चंद्र स्वर और पिंगला नाड़ी में सूर्य स्वर स्थित रहता है। सुषुम्ना मध्य में स्थित है, अतः जब हमारी नाक के दोनों स्वर चलते हैं तो माना जाता है कि सुषम्ना नाड़ी सक्रिय है। इस सक्रियता से ही सिक्स्थ सेंस जाग्रत होता है।इड़ा, पिंगला और सुषुन्मा के अलावा पूरे शरीर में हजारों नाड़ियाँ होती हैं। उक्त सभी नाड़ियों का शुद्धि और सशक्तिकरण सिर्फ प्राणायाम और आसनों से ही होता है। शुद्धि और सशक्तिकरण के बाद ही उक्त नाड़ियों की शक्ति को जाग्रत किया जा सकता है।
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कैसे जाग्रत करें छठी इंद्री : यह इंद्री सभी में सुप्तावस्था में होती है। भृकुटी के मध्य निरंतर और नियमित ध्यान करते रहने से आज्ञाचक्र जाग्रत होने लगता है जो हमारे सिक्स्थ सेंस को बढ़ाता है। योग में त्राटक और ध्यान की कई विधियाँ बताई गई हैं। उनमें से किसी भी एक को चुनकर आप इसका अभ्यास कर सकते हैं।
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अभ्यास का स्थान : अभ्यास के लिए सर्वप्रथम जरूरी है साफ और स्वच्छ वातावरण, जहाँ फेफड़ों में ताजी हवा भरी जा सके अन्यथा आगे नहीं बढ़ा जा सकता। शहर का वातावरण कुछ भी लाभदायक नहीं है, क्योंकि उसमें शोर, धूल, धुएँ के अलावा जहरीले पदार्थ और कार्बन डॉक्साइट निरंतर आपके शरीर और मन का क्षरण करती रहती है। स्वच्छ वातावरण में सभी तरह के प्राणायाम को नियमित करना आवश्यक है।
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मौन ध्यान : भृकुटी पर ध्यान लगाकर निरंतर मध्य स्थित अँधेरे को देखते रहें और यह भी जानते रहें कि श्वास अंदर और बाहर हो रही है। मौन ध्यान और साधना मन और शरीर को मजबूत तो करती ही है, मध्य स्थित जो अँधेरा है वही काले से नीला और नीले से सफेद में बदलता जाता है। सभी के साथ अलग-अलग परिस्थितियाँ निर्मित हो सकती हैं। मौन से मन की क्षमता का विकास होता जाता है जिससे काल्पनिक शक्ति और आभास करने की क्षमता बढ़ती है। इसी के माध्यम से पूर्वाभास और साथ ही इससे भविष्य के गर्भ में झाँकने की क्षमता भी बढ़ती है। यही सिक्स्थ सेंस के विकास की शुरुआत है।
अंतत: हमारे पीछे कोई चल रहा है या दरवाजे पर कोई खड़ा है, इस बात का हमें आभास होता है। यही आभास होने की क्षमता हमारी छठी इंद्री के होने की सूचना है। जब यह आभास होने की क्षमता बढ़ती है तो पूर्वाभास में बदल जाती है। मन की स्थिरता और उसकी शक्ति ही छठी इंद्री के विकास में सहायक सिद्ध होती है।
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इसका लाभ : व्यक्ति में भविष्य में झाँकने की क्षमता का विकास होता है। अतीत में जाकर घटना की सच्चाई का पता लगाया जा सकता है। मीलों दूर बैठे व्यक्ति की बातें सुन सकते हैं। किसके मन में क्या विचार चल रहा है इसका शब्दश: पता लग जाता है। एक ही जगह बैठे हुए दुनिया की किसी भी जगह की जानकारी पल में ही हासिल की जा सकती है। छठी इंद्री प्राप्त व्यक्ति से कुछ भी छिपा नहीं रह सकता और इसकी क्षमताओं के विकास की संभावनाएँ अनंत हैं।
योग का प्रभाव
योग का हमारे जीवन में क्या प्रभाव पड़ता है? यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। आज से 50 वर्ष पूर्व योग का अध्ययन-अध्यापन ऋषियों तथा महर्षियों का विषय रहा ही माना जाता था, लेकिन योग अब आम लोगों के मानसिक और शारीरिक रोग मिटाने में लाभदाय सिद्ध हो रहा है। स्वस्थ परिवार, स्वस्थ समाज तो स्वस्थ और खुशहाल देश।
योग का नियम से और नियमित अभ्यास करने से सबसे पहले हमारे शरीर स्वस्थ बनता है। शरीर के स्वस्थ रहने से मन और मस्तिष्क भी ऊर्जावान बनते हैं। दोनों के सेहतमंद रहने से ही आत्मिक सुख की प्राप्ति होती है। यह तीनों के स्वास्थ्य तालमेल से ही जीवन में खुशी और सफलता मिलती है।मान लो यदि हमारा जीवन काल 70-75 वर्ष है तो उसमें से भी शायद 20-25 वर्ष ही हमारे जीवन के कार्यशील वर्ष होंगे। उन कार्यशील वर्षों में भी यदि हम अपने स्वास्थ्य और जीवन की स्थिरता को लेकर चिंतित हैं तो फिर कार्य कब करेंगे। जबकि कर्म से ही जीवन में खुशी और सफलता मिलती है।हमें एक स्वस्थ व्यक्ति बनना होगा और इसके लिए योगाभ्यास जरूरी है। इसके द्वारा हम स्वस्थ मस्तिष्क व शरीर बनाते हैं। स्वस्थ होने पर ही हम हमारे कर्म की उपलब्धियों का सही उपयोग करते हुए अपने जीवन को स्वर्ग के समान बनाने में सफल हो सकते हैं।
वर्तमान युग : आधुनिक युग में योग का महत्व बढ़ गया है। इसके बढ़ने का कारण व्यस्तता और मन की व्यग्रता है। आधुनिक मनुष्य को आज योग की ज्यादा आवश्यकता है, जबकि मन और शरीर अत्यधिक तनाव, वायु प्रदूषण तथा भागमभाग के जीवन से रोगग्रस्त हो चला है।आधुनिक व्यथित चित्त या मन अपने केंद्र से भटक गया है। उसके अंतर्मुखी और बहिर्मुखी होने में संतुलन नहीं रहा। अधिकतर अति-बहिर्मुख जीवन जीने में ही आनंद लेते हैं जिसका परिणाम संबंधों में तनाव और अव्यवस्थित जीवनचर्या के रूप में सामने आया है।
योग का प्रभाव (effects of yoga) : योगासनों के नियमित अभ्यास से मेरूदंड सुदृढ़ बनता है, जिससे शिराओं और धमनियों को आराम मिलता है। शरीर के सभी अंग-प्रत्यंग सुचारु रूप से कार्य करते हैं। प्राणायाम द्वारा प्राणवायु शरीर के अणु-अणु तक पहुंच जाती है, जिससे अनावश्यक एवं हानिप्रद द्रव्य नष्ट होते हैं, विषांश निर्वासित होते हैं- जिससे सुखद नींद अपने समय पर अपने-आप आने लगती है। प्राणायाम और ध्यान से मस्तिष्क आम लोगों की अपेक्षा कहीं ज्यादा क्रियाशील और शक्तिशाली बनता है।योग से जहां शरीर की ऊर्जा जाग्रत होती है वहीं हमारे मस्तिष्क के अंतरिम भाग में छिपी रहस्यमय शक्तियों का उदय होता है। जीवन में सफलता के लिए शरीर की सकारात्मक ऊर्जा और मस्तिष्क की शक्ति की जरूरत होती है। यह सिर्फ योग से ही मिल सकती है अन्य किसी कसरत से नहीं।योग करते रहना का प्रभाव यह होता है कि शरीर, मन और मस्तिष्क के ऊर्जावान बनने के साथ ही आपकी सोच बदलती है। सोच के बदलने से आपका जीवन भी बदलने लगता है। योग से सकारात्मक सोच का विकास होता है।
आदत बदलना जरूरी : योग द्वारा सच्चा स्वास्थ्य प्राप्त करना बिलकुल सरल है। अच्छा स्वास्थ्य हर व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है। रोग और शोक तो केवल प्राकृतिक नियमों के उल्लंघन, अज्ञान तथा असावधानी के कारण होते हैं। खुशी और स्वास्थ्य के नियम बिलकुल सरल तथा सहज हैं। केवल अपनी कुछ गलत आदतों को बदलकर योग को अपनी आदत बनाएं।
अंतर्ध्यान शक्ति
अंतर्ध्यान शक्ति : इसे आप गायब होने की शक्ति भी कह सकते हैं। विज्ञान अभी इस तरह की शक्ति पर काम कर रहा है। हो सकता है कि आने वाले समय में व्यक्ति गायब होने की कोई तकनीकी शक्ति प्राप्त कर ले।
योग अनुसार कायागत रूप पर संयम करने से योगी अंतर्ध्यान हो जाता है। फिर कोई उक्त योगी के शब्द, स्पर्श, गंध, रूप, रस को जान नहीं सकता। संयम करने का अर्थ होता है कि काबू में करना हर उस शक्ति को जो अपन मन से उपजती है।
यदि यह कल्पना लगातार की जाए कि मैं लोगों को दिखाई नहीं दे रहा हूं तो यह संभव होने लगेगा। कल्पना यह भी की जा सकती है कि मेरा शरीर पारदर्शी कांच के समान बन गया है या उसे सूक्ष्म शरीर ने ढांक लिया है। यह धारणा की शक्ति का खेल है। भगवान शंकर कहते हैं कि कल्पना से कुछ भी हासिल किया जा सकता है। कल्पना की शक्ति को पहचाने।
जाति स्मरण का प्रयोग : इसे पूर्वजन्म ज्ञान सिद्धि योग कहते हैं जैन धर्म में इसे ‘जाति स्मरण’ कहते हैं। इसका अभ्यास करने या चित्त में स्थित संस्कारों पर संयम करने से ‘पूर्वजन्म का ज्ञान’ होने लगता है।
ऐसे जानें पूर्वजन्म को
हमारा संपूर्ण जीवन स्मृति-विस्मृति के चक्र में फंसा रहता है। उम्र के साथ स्मृति का घटना शुरू होता है, जोकि एक प्राकृति प्रक्रिया है, अगले जन्म की तैयारी के लिए। यदि मोह-माया या राग-द्वेष ज्यादा है तो समझों स्मृतियां भी मजबूत हो सकती है। व्यक्ति स्मृति मुक्त होता है तभी प्रकृति उसे दूसरा गर्भ उपलब्ध कराती है। लेकिन पिछले जन्म की सभी स्मृतियां बीज रूप में कारण शरीर के चित्त में संग्रहित रहती है। विस्मृति या भूलना इसलिए जरूरी होता है कि यह जीवन के अनेक क्लेशों से मुक्त का उपाय है।
योग में अष्टसिद्धि के अलावा अन्य 40 प्रकार की सिद्धियों का वर्णन मिलता है। उनमें से ही एक है पूर्वजन्म ज्ञान सिद्धि योग। इस योग की साधना करने से व्यक्ति को अपने अगले पिछले सारे जन्मों का ज्ञान होने लगता है। यह साधना कठिन जरूर है, लेकिन योगाभ्यासी के लिए सरल है।
कैसे जाने पूर्व जन्म को : योग कहता है कि सर्व प्रथम चित्त को स्थिर करना आवश्यक है तभी इस चित्त में बीज रूप में संग्रहित पिछले जन्मों का ज्ञान हो सकेगा। चित्त में स्थित संस्कारों पर संयम करने से ही पूर्वन्म का ज्ञान होता है। चित्त को स्थिर करने के लिए सतत ध्यान क्रिया करना जरूरी है।
जाति स्मरण का प्रयोग : जब चित्त स्थिर हो जाए अर्थात मन भटकना छोड़कर एकाग्र होकर श्वासों में ही स्थिर रहने लगे, तब जाति स्मरण का प्रयोग करना चाहिए। जाति स्मरण के प्रयोग के लिए ध्यान को जारी रखते हुए आप जब भी बिस्तर पर सोने जाएं तब आंखे बंद करके उल्टे क्रम में अपनी दिनचर्या के घटनाक्रम को याद करें। जैसे सोने से पूर्व आप क्या कर रहे थे, फिर उससे पूर्व क्या कर रहे थे तब इस तरह की स्मृतियों को सुबह उठने तक ले जाएं।
दिनचर्या का क्रम सतत जारी रखते हुए ‘मेमोरी रिवर्स’ को बढ़ाते जाए। ध्यान के साथ इस जाति स्मरण का अभ्यास जारी रखने से कुछ माह बाद जहां मोमोरी पॉवर बढ़ेगा, वहीं नए-नए अनुभवों के साथ पिछले जन्म को जानने का द्वार भी खुलने लगेगा। जैन धर्म में जाति स्मरण के ज्ञान पर विस्तार से उल्लेख मिलता है।
क्यों जरूरी ध्यान : ध्यान के अभ्यास में जो पहली क्रिया सम्पन्न होती है वह भूलने की, कचरा स्मृतियों को खाली करने की होती है। जब तक मस्तिष्क कचरा ज्ञान, तर्क और स्मृतियों से खाली नहीं होगा, नीचे दबी हुई मूल प्रज्ञा जाग्रत नहीं होगी। इस प्रज्ञा के जाग्रत होने पर ही जाति स्मरण ज्ञान (पूर्व जन्मों का) होता है। तभी पूर्व जन्मों की स्मृतियां उभरती हैं।
सावधानी : सुबह और शाम का 15 से 40 मिनट का विपश्यना ध्यान करना जरूरी है। मन और मस्तिष्क में किसी भी प्रकार का विकार हो तो जाति स्मरण का प्रयोग नहीं करना चाहिए। यह प्रयोग किसी योग शिक्षक या गुरु से अच्छे से सिखकर ही करना चाहिए। सिद्धियों के अनुभव किसी आम जन के समक्ष बखान नहीं करना चाहिए। योग की किसी भी प्रकार की साधना के दौरान आहार संयम जरूरी रहता है।
मन के पार एक मन
सम्मोहन विद्या भारतवर्ष की प्राचीनतम विद्या है। इसे योग में ‘प्राण विद्या’ या ‘त्रिकालविद्या’ के नाम से जाना जाता रहा है। अंग्रेजी में इसे हिप्नटिज़म कहते हैं। विश्वभर में हिप्नटिज़म के जरिए बहुत से असाध्य रोगों का इलाज भी किया जाता रहा है। आज भी सम्मोहन सिखाने या इस विद्या के माध्यम से इलाज करने के लिए बहुत सारे केंद्र प्रमुख शहरों में संचालित हो रहे हैं।
मन को सम्मोहित करना : मन के कई स्तर होते हैं। उनमें से एक है आदिम आत्म चेतन मन। आदिम आत्म चेतन मन न तो विचार करता है और न ही निर्णय लेता है। उक्त मन का संबंध हमारे सूक्ष्म शरीर से होता है। यह मन हमें आने वाले खतरे या उक्त खतरों से बचने के तरीके बताता है। यह छटी इंद्री जैसा है या समझे की यह सूक्ष शरीर ही है। गहरी नींद में इसका आभास होता हैं।
यह मन लगातार हमारी रक्षा करता रहता है। हमें होने वाली बीमारी की यह मन छह माह पूर्व ही सूचना दे देता है और यदि हम बीमार हैं तो यह हमें स्वस्थ रखने का प्रयास करता है। बौद्धिकता और अहंकार के चलते हम उक्त मन की सुनी-अनसुनी कर देते हैं। उक्त मन को साधना ही सम्मोहन है या उक्त मन में जाग जाना ही सम्मोहन है।
मन के पार एक मन : जब आप गहरी नींद में सो जाते हैं तो यह मन सक्रिय हो जाता है। चेतन मन अर्थात जागी हुई अवस्था में सोचने और विचार करने वाला मन जब सो जाता है तब अचेतन मन जाग्रत हो जाता हैं, जिसके माध्यम से व्यक्ति या तो सपने देखता है या गहरी नींद का मजा लेता है, लेकिन व्यक्ति जब सोते हुए भी उक्त मन में जाग जाए अर्थात होशपूर्ण रहे तो यह मन के पार चेतना का दूसरे मन में प्रवेश कर जाना है, जहाँ रहकर व्यक्ति अपार शक्ति का अनुभव करता है।
यह संभव है अभ्यास से। यह बहुत सरल है, जबकि आप यह महसूस करो कि आपका शरीर सो रहा है, लेकिन आप जाग रहे हैं। इसका मतलब यह कि आप स्थूल शरीर से सूक्ष्म शरीर में प्रवेश कर गए हैं तो आपकी जिम्मेदारी बढ़ जाती है क्योंकि इसके खतरे भी है।
मन को साधने का असर : सम्मोहन द्वारा मन की एकाग्रता, वाणी का प्रभाव व दृष्टि मात्र से उपासक अपने संकल्प को पूर्ण कर लेता है। इससे विचारों का संप्रेषण (टेलीपैथिक), दूसरे के मनोभावों को ज्ञात करना, अदृश्य वस्तु या आत्मा को देखना और दूरस्थ दृश्यों को जाना जा सकता है। इसके सधने से व्यक्ति को बीमारी या रोग के होने का पूर्वाभास हो जाता है।
कैसे साधें इस मन को : प्राणायम से साधे प्रत्याहार को और प्रत्याहार से धारणा को। इसको साधने के लिए त्राटक भी कर सकते हैं त्राटक भी कई प्रकार से किया जाता है। ध्यान, प्राणायाम और नेत्र त्राटक द्वारा सम्मोहन की शक्ति को जगाया जा सकता है। त्राटक उपासना को हठयोग में दिव्य साधना से संबोधित किया गया है। उक्त मन को सहज रूप से भी साधा जा सकता है। इसके लिए आप प्रतिदिन सुबह और शाम को प्राणायाम के साथ ध्यान करें।
अन्य तरीके : कुछ लोग अँगूठे को आँखों की सीध में रखकर तो, कुछ लोग स्पाइरल (सम्मोहन चक्र), कुछ लोग घड़ी के पेंडुलम को हिलाते हुए, कुछ लोग लाल बल्ब को एकटक देखते हुए और कुछ लोग मोमबत्ती को एकटक देखते हुए भी उक्त साधना को करते हैं, लेकिन यह कितना सही है यह हम नहीं जानते।
आप उक्त साधना के बारे में जानकारी प्राप्त कर किसी योग्य गुरु के सान्निध्य में ही साधना करें।
तेज दिमाग के लिए ध्यान
वर्तमान में ध्यान की आवश्यकता बढ़ गई है। व्यग्र और बैचेन मन के चलते जहाँ व्यक्ति मानसिक तनाव से घिरा रहता हैं वहीं यह मौसमी और अन्य गंभीर रोगों की चपेट में भी आ जाता है। दवाई से कुछ हद तक रोग का निदान हो जाता है, लेकिन जीवनभर कमजोरी रह जाती है। ध्यान दवा, दुआ और टॉनिक तीनों का काम करता है।
ध्यान का अर्थ : ध्यान का अर्थ ध्यान देना, हर उस बात पर जो हमारे जीवन से जुड़ी है। शरीर पर, मन पर और आस-पास जो भी घटित हो रहा है उस पर। विचारों के क्रिया-कलापों पर और भावों पर। इस ध्यान देने के जरा से प्रयास से ही चित्त स्थिर होकर शांत होता है तथा जागरूकता बढ़ती। वर्तमान में जीने से ही जागरूकता जन्मती है। भविष्य की कल्पनाओं और अतीत के सुख-दुख में जीना ध्यान विरूद्ध है।
ध्यान की शुरुआती विधि : प्रारंभ में सिद्धासन में बैठकर आँखें बंद कर लें और दाएँ हाथ को दाएँ घुटने पर तथा बाएँ हाथ को बाएँ घुटने पर रखकर, रीढ़ सीधी रखते हुए गहरी श्वास लें और छोड़े। सिर्फ पाँच मिनट श्वासों के इस आवागमन पर ध्यान दें कि कैसे यह श्वास भीतर कहाँ तक जाती है और फिर कैसे यह श्वास बाहर कहाँ तक आती है।
ध्यान की अवधि : उपरोक्त ध्यान विधि को नियमित 30 दिनों तक करते रहें। 30 दिनों बाद इसकी समय अवधि 5 मिनट से बढ़ाकर अगले 30 दिनों के लिए 10 मिनट और फिर अगले 30 दिनों के लिए 20 मिनट कर दें। शक्ति को संवरक्षित करने के लिए 90 दिन काफी है। इससे जारी रखें।
सावधानी : ध्यान किसी स्वच्छ और शांत वातावरण में करें। ध्यान करते वक्त सोना मना है। ध्यान करते वक्त सोचना बहुत होता है। लेकिन यह सोचने पर कि ‘मैं क्यों सोच रहा हूँ’ कुछ देर के लिए सोच रुक जाती है। सिर्फ श्वास पर ही ध्यान दें और संकल्प कर लें कि 20 मिनट के लिए मैं अपने दिमाग को शून्य कर देना चाहता हूँ।
ध्यान के लाभ : जो व्यक्ति ध्यान करना शुरू करते हैं, वह शांत होने लगते हैं। यह शांति ही मन और शरीर को मजबूती प्रदान करती है। ध्यान आपके होश पर से भावना और विचारों के बादल को हटाकर शुद्ध रूप से आपको वर्तमान में खड़ा कर देता है।
ध्यान से ब्लडप्रेशर, घबराहट, हार्टअटैक जैसी बीमारियों पर कंट्रोल किया जा सकता है। ध्यान से सभी तरह के मानसिक रोग, टेंशन और डिप्रेशन दूर होते हैं। ध्यान से रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता हैं। स्मृति दोष में लाभ मिलता है। तेज और एकाग्र दिमाग के लिए ध्यान करना एक उत्तम और कारगर उपाय है। ध्यान से आँखों को राहत मिलती है जिससे उसकी देखने की क्षमता का विकास होता है।
योग और भूत-प्रेत
पहले ब्रिटेन में योग को हिंदुओं का विज्ञान कहकर ईसाइयों को योग से दूर रहने की हिदायत दी गई थी। फिर मलेशिया की शीर्ष इस्लामिक परिषद ने योग के खिलाफ फतवा जारी कर मुसलमानों को इससे दूर रहने को कहा और अब अमेरिका में योग के खिलाफ ईसाई धर्मगुरुओं ने आवाज उठाई है।
अमेरिका के एक पादरी ने यह कहकर नई बहस छेड़ दी है कि योग ईसाई धर्म के खिलाफ है। मार्स हिल चर्च के मार्क ड्रिस्कोल ने इस साल की शुरुआत में कहा था कि योग अभ्यास की जड़ें भूत-प्रेतों की दुनिया तक फैली हैं, जिसे ‘पूर्णत: मूर्तिपूजा’ करार दिया जा सकता है।
ड्रिस्कोल के हवाले से एक अखबार ने कहा कि क्या ईसाई धर्म के अनुयायियों को योग से इसलिए दूर रहना चाहिए क्योंकि इसकी जड़ें भूत-प्रेत तक जाती हैं? बिलकुल। योग भूत-प्रेतों से जुड़ा है। अगर आप योग कक्षाओं में जाना शुरू कर रहे हैं तो इसका तात्पर्य है कि आप भूत-प्रेत से जुड़ी कक्षाओं में जा रहे हैं।
पादरी के समर्थन में साउथन बैपटिस्ट थिओलोजिकल सेमिनरी के अध्यक्ष आर. अलबर्ट मोहलर जूनियर ने कहा कि योग ईसाई धर्म के विपरीत है।
अब सवाल यह उठता है कि स्वस्थ रहने के अभ्यास या कसरत करने से कोई कैसे भूत-प्रेत से जुड़ सकता है और समझ में नहीं आता कि इसे कैसे ‘पूर्णत: मूर्तिपूजा’ करार दिया जा सकता है? उक्त वक्तव्य से लगता है कि यह योग को जाने बगैर दिया गया बयान है या फिर योग के प्रचार-प्रसार से पादरी डर गए हैं।
यह बात ऐसी ही है कि मैं आपसे कहूँ कि आयुर्वेदिक दवा खाने से आप भारतीय या हिंदू बन सकते हैं या आयुर्वेद की जड़ें भूत-प्रेतों की दुनिया तक फैली हैं।
लगभग चार हजार ईसा पूर्व जब योग का जन्म हो रहा था तब मानव जाति के मन में यह खयाल ही नहीं था कि कौन हिंदू, कौन बौद्ध, कौन ईसाई और कौन मुसलमान। योग के ईश्वर की बात करें तो वह जगत का कर्ता-धर्ता, संहर्ता या नियंता नहीं है। जब वह ऐसा नहीं है तो उसकी मूर्ति बनाकर उसे पूजना गुनाह है।
अब सवाल कि योग अभ्यास की जड़ें भूत-प्रेतों की दुनिया तक फैली हैं ऐसा ईसाई पादरी का कहना है तो जरा यह भी जान लें की योग की जड़ें क्या हैं।
योग- इस शब्द का अर्थ होता है जोड़ और जोड़ना। क्या जोड़, क्या जोड़ना? स्वयं को स्वयं से जोड़ और स्वयं को प्रकृति-ईश्वर से जोड़ना ही योग का लक्ष्य है। योगाभ्यास की जड़ है यम और नियम। दुनिया के सारे धर्म यम और नियम पर ही टिके हैं और यही योग की जड़ है।
यम पाँच हैं- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह। नियम भी पाँच होते हैं- शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्राणिधान। अब आप बताएँ ये यम-नियम कैसे भूत प्रेत की दुनिया तक फैले हैं? यम, नियम के बाद ही आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा और ध्यान का नंबर आता है। क्या आसन और प्राणायाम द्वारा शारीर को स्वस्थ्य रखने से कोई भूतों से जुड़ जाएगा?
ईसाई पादरी ने सही कहा कि जरा यह भी जान लें की योग की जड़ें क्या हैं। हम भी कहते हैं कि योग की जड़ें जाने बगैर योग ना करें वर्ना भूत-प्रेत आपको परेशान कर सकते हैं क्योंकि योग तो ऐसा अभ्यास है जो दवा का काम भी करता है और दुआ का भी।
योग विशुद्ध रूप से शरीर और मन का विज्ञान है। योग के दर्शन को हिंदू ही नहीं दुनिया के प्रत्येक धर्म ने अपनाया है। ध्यान और योग का कोई धर्म नहीं। दोनों ही धर्मनिरपेक्ष और वैज्ञानिक हैं, जिसके माध्यम से शरीर और मस्तिष्क को पूर्ण स्वस्थ्य रखा जाता है।
योग के माध्यम से आज दुनिया के लाखों लोग शारीरिक और मानसिक बीमारियों से छुटकारा पाकर स्वस्थ होकर अपना जीवन खुशी से जी रहे हैं। सभी जानते हैं कि धर्म का धंधा तो दुख, भय और लालच पर ही खड़ा है।
खुली आँखों से लो नींद
आँखें खुली हों, लेकिन आप देख नहीं सकते। ऐसी स्थिति जब सध जाती है तो उसे शाम्भवी मुद्रा कहते हैं। ऐसी स्थिति में आप नींद का मजा भी ले सकते हैं। यह बहुत कठिन साधना है। इसके ठीक उल्टा कि जब आँखें बंद हो तब आप देख सकते हैं यह भी बहुत कठिन साधना है, लेकिन यह दोनों ही संभव है। असंभव कुछ भी नहीं। बहुत से ऐसे पशु और पक्षी हैं जो आँखे खोलकर ही सोते हैं।
विधि- यदि आपने त्राटक किया है या आप त्राटक के बारे में जानते हैं तो आप इस मुद्रा को कर सकते हैं। सर्वप्रथम सिद्धासन में बैठकर रीढ़-गर्दन सीधी रखते हुए पलकों को बिना झपकाएँ देखते रहें, लेकिन ध्यान किसी भी चीज को देखने पर ना रखें। दिमाग बिल्कुल भीतर कहीं लगा हो।
सलाह- शाम्भवी मुद्रा पूरी तरह से तभी सिद्ध हो सकती है जब आपकी आँखें खुली हों, पर वे किसी भी चीज को न देख रही हो। ऐसा समझें की आप किसी धून में जी रहे हों। आपको खयाल होगा कि कभी-कभी आप कहीं भी देख रहें होते हैं, लेकिन आपका ध्यान कहीं ओर रहता है।
अवधि- इस मुद्रा को शुरुआत में जितनी देर हो सके करें और बाद में धीरे-धीरे इसका अभ्यास बढ़ाते जाएँ।
लाभ- शाम्भव मुद्रा को करने से दिल और दिमाग को शांति मिलती है। योगी का ध्यान दिल में स्थिर होने लगता है। आँखें खुली रखकर भी व्यक्ति नींद और ध्यान का आनंद ले सकता है। इसके सधने से व्यक्ति भूत और भविष्य का ज्ञाता बन सकता है।
गायब होने की सिद्धि
अंतर्ध्यान शक्ति : इसे आप गायब होने की शक्ति भी कह सकते हैं। विज्ञान अभी इस तरह की शक्ति पर काम कर रहा है। हो सकता है कि आने वाले समय में व्यक्ति गायब होने की कोई तकनीकी शक्ति प्राप्त कर ले।
योग अनुसार कायागत रूप पर संयम करने से योगी अंतर्ध्यान हो जाता है। फिर कोई उक्त योगी के शब्द, स्पर्श, गंध, रूप, रस को जान नहीं सकता। संयम करने का अर्थ होता है कि काबू में करना हर उस शक्ति को जो अपन मन से उपजती है।
यदि यह कल्पना लगातार की जाए कि मैं लोगों को दिखाई नहीं दे रहा हूं तो यह संभव होने लगेगा। कल्पना यह भी की जा सकती है कि मेरा शरीर पारदर्शी कांच के समान बन गया है या उसे सूक्ष्म शरीर ने ढांक लिया है। यह धारणा की शक्ति का खेल है। भगवान शंकर कहते हैं कि कल्पना से कुछ भी हासिल किया जा सकता है। कल्पना की शक्ति को पहचाने।
आत्मबल की शक्ति
आत्मबल की शक्ति : योग साधना करें या जीवन का और कोई कर्म आत्मल की शक्ति या कहें की मानसिक शक्ति का सुदृढ़ होना जरूरी है तभी हर कार्य में आसानी से सफलता मिल सकती है। यम-नियम के अलावा मैत्री, मुदिता, करुणा और उपेक्षा आदि पर संयम करने से आत्मबल की शक्ति प्राप्त होती है।
बलशाली शरीर : आसनों के करने से शरीर तो पुष्ट होता ही है साथ ही प्राणायाम के अभ्यास से वह बलशाली बनता है। बल में संयम करने से व्यक्ति बलशाली हो जाता है।
बलशाली अर्थात जैसे भी बल की कामना करें वैसा बल उस वक्त प्राप्त हो जाता है। जैसे कि उसे हाथीबल की आवश्यकता है तो वह प्राप्त हो जाएगा। योग के आसन करते करते यह शक्ति प्राप्त होती है। सोच से संचालित होने वाली इस शक्ति को बल संयम कहते हैं।
दिव्य श्रवण शक्ति
दिव्य श्रवण शक्ति : समस्त स्रोत और शब्दों को आकाश ग्रहण कर लेता है, वे सारी ध्वनियां आकाश में विद्यमान हैं। आकाश से ही हमारे रेडियो या टेलीविजन यह शब्द पकड़ कर उसे पुन: प्रसारित करते हैं। कर्ण-इंद्रियां और आकाश के संबंध पर संयम करने से योगी दिव्यश्रवण को प्राप्त होता है।
अर्थात यदि हम लगातार ध्यान करते हुए अपने आसपास की ध्वनि को सुनने की क्षमता बढ़ाते जाएं और सूक्ष्म आयाम की ध्वनियों को सुनने का प्रयास करें तो योग और टेलीपैथिक विद्या द्वारा यह सिद्धि प्राप्त की जा सकती है।
दिव्य श्रवण शक्ति योग से हम दूर से दूर, पास से पास और धीमी से धीमी आवाज को आसानी से सुन और समझ पाते हैं। वह ध्वनि या आवाज किसी भी पशु, पक्षी या अन्य भाषी लोगों की हो, तो भी हम उसके अर्थ निकालने में सक्षम हो सकते हैं। अर्थात हम पशु-पाक्षियों की भाषा भी समझ सकते हैं।
हमारे कानों की क्षमता अपार है, लेकिन हम सिर्फ वही सुन पाते हैं जो हमारे आस-पास घटित हो रहा है या दूर से जिसकी आवाज जोर से आ रही है। अर्थात ना तो हम कम से कम आवाज को सुन पाते हैं और ना ही अत्यधिक तेज आवाज को सहन कर पाते हैं।
दूसरी बात कि हम जो भी सुन रहे हैं यदि वह हमारी भाषा से मेल खाता है तो ही हम उसे या उसके अर्थ को समझ पाते हैं, जैसे यदि आपको तमिल नहीं आती है तो आपके लिए उनका भाषण सिर्फ एक ध्वनि मात्र है। दूसरी ओर ब्रह्मांड से धरती पर बहुत सारी आवाजें आती हैं, लेकिन हमारा कान उन्हें नहीं सुन पाता।
॥श्रोत्राकाशयो: संबन्धंसंयमाद्दिव्य सोत्रम्॥3/40॥
समस्त स्रोत और शब्दों को आकाश ग्रहण कर लेता है, वे सारी ध्वनियां आकाश में विद्यमान हैं। कर्ण-इंद्रियां और आकाश के संबंध पर संयम करने से योगी दिव्य श्रवण को प्राप्त होता है।
कानों पर संयम : आकाश को समझे जो सभी तरह की ध्वनि को ग्रहण करने की क्षमता रखता है। आपका मन आकाश की भांति होना चाहिए। कानों पर संयम करने से साधक को दिव्य श्रवण की शक्ति प्राप्त होती है। जाग्रत अवस्था में कानों को स्वत: ही बंद करने की क्षमता व्यक्ति के पास नहीं है। जब व्यक्ति सो जाता है तभी उसके कान बाहरी आवाजों के प्रति शून्य हो जाते हैं।
इससे यह सिद्ध हुआ की कान भी स्वत: बंद हो जाते हैं, लेकिन इन्हें जानबूझकर बगैर कानों में अंगुली डाले बंद कर बाहरी आवाज के प्रति ध्वनि शून्य कर देना ही कानों पर संयम करना है। कानों पर संयम करने से ही व्यक्ति दिव्य श्रवण की शक्ति को प्राप्त कर सकता है।
कैसे होगा कानों पर संयम : धारणा और ध्यान के माध्यम से कानों पर संयम प्राप्त किया जा सकता है। धारणा से चित्त में एकाग्रता आती है और ध्यान से पांचों इंद्रियों में संयम प्राप्त होता है। श्रवण क्षमता बढ़ाने के लिए ध्यान से सुनने पर ध्यान देना चाहिए। कहने या बोलने से ज्यादा सुनना महत्वपूर्ण होता है। श्रवणों का धर्म मानता है कि सुनने से ही ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।
सीधा सा योग सूत्र है कि जब तक आप बोल रहे हैं तब तक दूसरों की नहीं सुन सकते। मन के बंद करने से ही दूसरों के मन सुनाई देंगे।
शुरुआत : किसी सुगंधित वातावण में मौन ध्यान के साथ अच्छा संगीत सुनने का अभ्यास करें। रात में मन को ज्यादा से ज्यादा शांत रखकर दूर से आ रही ध्वनि या पास के किसी झिंगुर की आवाज पर चित्त को एकाग्र करें। आवाजों का विश्लेषण करना सिखें। हमारे आस-पास असंख्य आवाजों का जाल बिछा हुआ है, लेकिन उनमें से हम 20 से 30 प्रतिशत ही आवाज इसलिए सुन पाते हैं क्योंकि उन्हीं पर हमारा ध्यान होता है, हमें यातायात के शोर में चिड़ियों की आवाज नहीं सुनाई देती।
इसका लाभ : इसका सांसारिक लाभ यह कि सुनने की शक्ति पर लगातार ध्यान देने से व्यक्ति को बढ़ती उम्र के साथ श्रवण दोष का सामना नहीं करना पड़ता, अर्थात बुढ़ापे तक भी सुनने की क्षमता बरकरार रहती है।
इसका आध्यात्मिक लाभ यह कि व्यक्ति दूसरे की भाषा को ग्रहण कर उसके अर्थ निकालने में तो सक्षम हो ही जाता है साथ ही वह अनंत दूर तक की आवाज को भी आसानी से सुन सकता है और चिंटी की आवाज को भी सुनने में सक्षम हो जाता है। यह कहना नहीं चाहिए कि सिर के बालों के धरती पर गिरने की आवाज भी सुनी जा सकती है।
॥शब्दार्थप्रत्ययानामितरेतराध्यासात्संकरस्तत् प्रविभागसंयमात्सर्वभूतरूपतज्ञानम्।…तत: प्रातिभ श्रावणवेदनादर्षास्वादवात्तर् जायन्ते॥ 3/ 17-3/35॥
Kumar said,
June 16, 2015 at 11:31 pm
IT IS REALLY
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oshoisyours said,
June 18, 2015 at 11:11 pm
yes its total real if u dont believe u can try it. 🙂
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Neeraj said,
September 24, 2016 at 12:27 pm
Very very informative👍👍👍
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siddhant said,
October 23, 2016 at 12:49 am
this is achievment of indians which is beyond the science
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sanju singh said,
December 27, 2016 at 6:44 pm
Hii sir … ye jankariya bohat kam ki hai.-
Par jab hum dhyan karte vakt apne bhrukuti par dhyan lagate hai to man mai bhot sare pictures dikhi deti hai .
Isse kaise bacha jai.
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Osho Hindi Books said,
December 27, 2016 at 10:02 pm
Dekho Sanju me Janta hu k tum aapne aagya chakra ko jagrat krna chahte ho,jisse tum jo mann chaho kr sako 🙂 kher me tumhare sawaal ka jawab deta hu.Tum aabhi Dhyaan krte waqt bhrutiyo par dhyaan kendrit na kro aabhi kewal Dhyaan ko mehatv do.Third eye ko aabhi jagrat krne ki kosis na karo jab dhyaan me gehre hojaoge ye apne aap jagrat hone lagegi. Jab Dhyaan krte ho to kewal apne body par saanso par aane jaane wale vicharo par asspass se aane wali aaawazo pardhyan rakho. Aur jo vichar picture dikhai de rhe hai unse pareshan hone ki zarurat nai hai unko dekho mgr unke piche mt bhaago. jese hum cinema hall me beth kar film dekhte hai theek wese hee inko kewal dekho Tum dekhna tumhe isme aanand aane lagega aur wo samay bhi aayega k tum jo dekhna chahoge wo dikhai dene lagega vicharo se lado mat kewal drstaa hokar dekho.
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sanju singh said,
December 27, 2016 at 6:46 pm
Kya sidhi jagrit hone ke baad hum uska istemal kar sakte hai ya vo sirf dhyan ke dwara hi kam karti hai .
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Osho Hindi Books said,
December 27, 2016 at 10:05 pm
Haan jese tum chahte ho k jo tum chaho wo hojaye mgr Sanju Sidhi prapt krna saral nai hota uske liye Dhyaan me gehre hona zaruri hai. haan ye Dhyaan k dwara hee kaam krti hai kyuki dhyaan se hee ye nirmit hoti hai. Aur jab tum Dhyaan me gehre hojaoge to tumhe iske istmal ki zarurat he nai padegi tumahre kaam apne aap he bannne lag jayenge.
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Osho Hindi Books said,
December 27, 2016 at 10:10 pm
Haan Dhyaan to koi bhi kr sakta hai iske liye umar ki zarurt nai aab ye bhi nahi k ek saal k bachhe se karwo. Matlab thodi samjh hona zaruri hai to theek hai
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sanju singh said,
December 27, 2016 at 7:02 pm
Dhyan karne ke baad kuch din se padai mai jaida man dhyan ki ore hi rehta hai .
Aap koi upai batain jis se me dhyan ke sath aapni padhai bhi kar saku.
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Osho Hindi Books said,
December 27, 2016 at 10:09 pm
Sanju ye isliye horha hai kyuki tumhari excitment un sakhtiyo k liye k buss zaldi se miljaaye aur fir me to raja. 🙂 Zald baazi naa karo. Jese apni body muscle banane Gym jaate ho ek din to body nai bann jaati aur gym jaane k sath sath baaki kaam to krte he ho.Theek isi tarah Dhyaan ko aabhi ek part ki tarh hee samjho. zald baazi karoge to kuch haasil nai hoga. iske liye mehnat aur sayam ki aavsakta hai. Sabar se kaam lo positive result tabhi aayenge.
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sanju singh said,
December 27, 2016 at 7:04 pm
Kya dhyan kisi umar vala bhi kar sakta hai .
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sanju singh said,
December 29, 2016 at 7:03 pm
Hello.. Dhyan nirantar kab tak karna chaiye.
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Osho Hindi Books said,
December 30, 2016 at 2:22 am
Haan Sanju Dekho Dhyaan jo hai kum se kum 45mint krna chiye. zyada se zyada 2 gnte bht hai. Dhyaan krne se zzyada Dhyaan ko saadna chiye.tb wo 45 mint kiya gya dhyaan kaamyaab hoga. jese kisi bimaari ki aapne dawai khaai to khaali dawai hee kaam nai krti parhez krna bhi hota hai tbhi bimari theek hoti hai.Samjhe
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sanju singh said,
December 29, 2016 at 7:11 pm
Dhyan karte vakt sabse jada dhyan kaha hona chaiye. Dhyan kitni der tak kar sakte hai. Dhyan se kya bimari khatam hori hai. Hum agar dhyan karte hai to hume kaise pata chalega ki hu dhyan me lin ho gaye hai kya dhyan mai jab dil ki dhadkne ki awaz sunai deti hai.
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Osho Hindi Books said,
December 30, 2016 at 2:23 am
Dekho sanju sabse phele to ye pta chale k tum dhyaan ki kaunsi vidhi kr rhe ho tbhi me bta paaunga. wese Dhyaan jb shuru krte hai to aapni saaso pr fir aaspass hone wali aawajo pr dete hai fir dhire dhire aankho me dikhne wale andkaar par.Aur haaan Dhyaan se bimaari khtm hosakti hai mgr depend krta hai bimari hai kaunsi maansik yaa shaaririk.jb dhyaan krte hai to pta krne ki zarurat nai k leen hue k nai wo apne aap he hojata hai.Jb dhyaan me gehre hojaoge to koi vichar nai dikhai dega. naa ye body mehsus hogi bus ek prakash dikhaai dega aur uske aage kyaa dikhai dega wo apna apna anubhav hai. tum blog me dekh sakte ho ye video bhi dekho https://oshoisyours.wordpress.com/osho-hindi-videos/
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sanju singh said,
December 29, 2016 at 7:13 pm
Kya dhyan buddh bhagwan bhi karte the.
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Osho Hindi Books said,
December 30, 2016 at 2:23 am
Haan Buddh bhi Dhyaan krte the Tum unke baare me padna chaho to pad sakte ho bht jaankari hai unke baare me internet par mgr karoge kyaa. Tum khud Buddh ban sakte ho. Dhyaan karo sahi vidhiyo ko chuno.Hone wale anubhavo par vichar karo zaldi mat machao sabr se kaaam lo.
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sanju singh said,
December 29, 2016 at 11:14 pm
Sir reply kijiye.
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Osho Hindi Books said,
December 30, 2016 at 2:23 am
Dhnywaad
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Neha said,
February 28, 2017 at 10:02 am
I liked the post a lot. It really touched the heart. Thanks for sharing with us.
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सत्यदेव त्यागी said,
May 21, 2017 at 4:39 am
मैं ध्यान साधना करता हु और आज्ञाचक्र में ध्यान लगते समय काला, सफ़ेद और फिर नीले रंग की रौशनी दिखती है ! इसी बीच मेरे सहसहरार साहसह्रार चक्र में चींटी से नीचे से ऊपर की और चलती हुई धीरे धीरे पुरे स्कुल में महसूस होती है ! अब आगे क्या करना चाहिए !
कृपया मार्गदर्शन करे !
मुझे गुरु बाबा जी की कृपा से शाम्भवी शक्तिपात प्राप्त है
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Osho Hindi Books said,
June 2, 2017 at 5:38 am
Mene ek link bheja hai dear sabko aab aap mere sath easy jud sakte hai mene ek group create kiya hai jiska link post me aap dekh sakte hai. Dhyaan se related aapki problems share kar sakte hai. Dhnywaad.
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Osho Hindi Books said,
June 21, 2017 at 6:03 am
Here is the link : https://chat.whatsapp.com/5oZ8xN4iPiHAM4UtlOrLA7
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Dipak Verma said,
May 25, 2017 at 11:40 am
Good knowledge sir
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Osho Hindi Books said,
June 2, 2017 at 5:38 am
Mene ek link bheja hai dear sabko aab aap mere sath easy jud sakte hai mene ek group create kiya hai jiska link post me aap dekh sakte hai. Dhyaan se related aapki problems share kar sakte hai. Dhnywaad.
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Osho Hindi Books said,
June 21, 2017 at 6:03 am
Here is the link : https://chat.whatsapp.com/5oZ8xN4iPiHAM4UtlOrLA7
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prashant said,
July 4, 2021 at 9:43 pm
I liket power of meditation
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Dipak Verma said,
May 25, 2017 at 11:42 am
Good knowledge culection sir
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jitu said,
September 24, 2017 at 9:10 am
jo cheez pana chaho usko pane ke liye kaun sa dhyan krna chahiye ? Main kewal man ko shant krne ka dhyan krta hu filhal. Jab ‘no mind state’ me pahunch jata hu to neend ajati hai, kahi main galat to nahi kar raha ? Please batayie….
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Osho Hindi Books said,
October 4, 2017 at 3:05 am
Hello
Maafi chahta hu me reply nai de paaya is blog ko kholne me time nai mila. Mene is blog me apna whtsapp group link dala tha jisse jo bhi koi aaye use me add kr saku aur unke liye suvidha hojaye. Me kuch din ke liye apna number daal rha hu fir me isse hata dunga. Aap muje call kijiye me aapko whtsapp meditation group me daal dunga jaha aap sawaal jawaab aaram se kr sakte hai. Dhnywaad
Mobile:
Swami Dhyaan Nirmal : 9990493010
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Rahul Urheakr said,
January 17, 2018 at 1:44 am
jab mai dhyan karta hu to mera sar gubbare ke tarah lagne lagta hai muze aisa pratit hota hai ki mere sar me hava bhari huvi hai aur vo gubbare ke tarah mahesoos hota hai.
ye kya hai ?
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Osho Hindi Books said,
February 14, 2018 at 9:41 pm
9990493010 contact me. i will add you in group there you can ask your questions
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Deo Prakash Sharma said,
April 18, 2018 at 3:40 am
ध्यान से प्राप्त सिद्धियाँ क्या दूसरों के हित के लिए भी नही किया जाना चाहिये?
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Osho Hindi Books said,
May 2, 2018 at 5:30 am
Bilkul kr sakte ho dusro hit , Mgr phele ye paa to lo tb tumhari rai kyaa hogi ye tb ki baat hai.
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Osho Hindi Books said,
August 7, 2018 at 12:45 am
Phele Prapt to kijiye
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Sundar Singh said,
July 14, 2018 at 12:13 pm
Me aapse puchna chahoonga Bina yog k sabhav ki aap apne sharir me ek Shakti ka anubhav kare aap jis eshvar ko mante hai use yaad Karne ya unki baat hone par sharir me rongte ya alag Shakti mehsoos kare
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Osho Hindi Books said,
August 7, 2018 at 12:43 am
plz call me 9990493010
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harshit said,
August 2, 2018 at 7:44 pm
sir jb m meditation krta hu toh mujhe dil ki awaaz aur ek awaaz dimag se ati h phir kya krna chayiye wo mujhe samaj nhi ata..kriya krke aap bataye..
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Vijay lohani said,
November 24, 2018 at 7:05 am
Aap ne jitni bhi baaten batayi hai mujhe wo sab baten saty lag rahi hain .kyon ki aap saty bol rahe ho our ismen se sab ghatnayen mere sath ho chuki hain , our mujhe to isse bhi khatarnaak anubhaw huwe hain ,, mujhe sabki aawj3n sunayi deti thi our jaisa men bolta tha waisa hota tha jaisa ki barish aana our bhi bahut kuch,to ab men kya karun .our kya meri chati indriy jagrit hai
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Osho Hindi Books said,
November 27, 2018 at 12:52 am
Join Group Call me 9990493010
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Osho Hindi Books said,
February 12, 2019 at 3:59 am
9990493010 Join my whatsapp group
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Avinash said,
November 26, 2018 at 10:31 am
Pls send me the link of your WhatsApp group…
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Osho Hindi Books said,
November 27, 2018 at 12:52 am
Ok
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Gurcharan S. Jaggi said,
March 3, 2019 at 7:40 am
Great and truly an informative post. Share karne ka bahut bahut shukriya. Main 4 months se Dhyan Saadhna seekhne ki koshish kar raha hu.
Aur aapka post bahut fayademand hai mujh jaise beginners ke liye.
Thanks
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Suchitra said,
August 27, 2020 at 1:39 pm
Kya kisi bhi chiz ko vashibhoot kiya ja Sakta h.
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Osho Hindi Books said,
September 7, 2020 at 12:54 am
Haan bilkul Mgr uske liye phele khud ko vasibhioot krna aana chiye. ydi aap apne par control kr sake hai to kisi ko bhi control kr sakte hai
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prashant said,
July 4, 2021 at 9:34 pm
I liket power of meditation
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Yogesh said,
January 18, 2023 at 2:51 pm
Hello sir, jab main 2-3saal pehle agya chakra par dhyan karta tha to mere sar mein lagatar dard rehta tha. Lagbhag 1saal tak dard raha mere sar mein to mene agya chakra par dhyan karna chod diya ab main thik hu par main janna chahta hu ki agya chakra par dhyan karne se sar mein dard kyu hone lagta hain ?
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Osho Hindi Books said,
April 21, 2023 at 5:18 am
Yogesh ji me is blog par kum active rehta hu. isliye mene apna whtsapp number share kiya hua hai. a. sabse phele to me ye batadu ki mann par kaam krne se phele hume ye janna padta hai ki mann kese kaam krta hai, fir uske according vidhiya leni padti hai. aur me nai janta aapne kaha se pad kr sun kr dhyaan ki shuruwat ki to uske liye jannaa zaruri hai. to kripya diye hue whtsapp pr sampark kre.9990493010
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